जब तक सृष्टि में असमानताएं विद्यमान हैं तभी तक सृष्टि में जीवन की कल्पना की जा सकती है. व्यक्ति के जीवन की सारी भाग दौड़ केवल अपने जीवन स्तर को ऊपर उठाने तथा किसी और की बराबरी करने की होड़ में ही होती रहती है. यदि सभी का जीवन स्तर एक बराबर हो जाये तो क्या कोई भाग दौड़ जिंदगी में रहेगी क्या कोई कुछ करने की सोचेगा भी. क्या जीवन का कोई अस्तित्व रहेगा यदि सम्पूर्ण सृष्टि के लोग अम्बानी के बराबर हो जाएँ अथवा तो क्या कोई कुछ करने की सोचेगा।
यदि संपूर्ण सृष्टि में उपलब्ध धन को संपूर्ण जनसंख्या में बराबर बराबर बांट दिया जाये यदि संपूर्ण सृष्टि के लोगों को एक ही समान पद पर आसीन कर दिया जाये । यदि सभी के पद अधिकार एवं आय एक समान गहो जाएं ये तो क्या प्रलय की स्थिति निर्मित नहीें हो जायेगी । ऐसी स्थिति में जीवन की कल्पना संभव नहीं है. असमानताओं के रहने के कारण ही सृष्टि में जीवन चल रहा है ।
भौतिक उदाहरण की भी कल्पना करके देखें सृष्टि के स्थानों में उंचाई असमान है कहीं पहाड़ है तो कही समुद्र है। नदियां अधिक ऊंचाइयों ओर से चलकर कम ऊंचाई वाले स्थानों की ओर जाती है इसीलिये उनमें प्रवाह है और जीवन है . यदि जमीन का स्तर प्रत्येक स्थान पर बराबर हो जाये तो प्रवाह कैसे रहेगा । प्रवाह होगा ही नहीं और जल का स्तर भी संपूर्ण सृष्टि में एक बराबर हो जायेगा अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि जल मग्न हो जाएगी जो महा जल प्रलय का ही दृश्य प्रगट करेगा ।
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